शाश्वत सत्य ईश्वरकृत इस पॄथ्वी पर अजर,अमर अनादि कुछ भी नही है ,सभी परिवर्तनशील है इस परिवर्तन का व्यापक असर मानव सभ्यता एवं संस्कृति पर भी पड़ा है परिणामस्वरूप आदि मानव से हिन्दू संस्कृति की स्थापना हुई और ईसमे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वेशय ओर क्षुद्र चार वर्ण बने । रावणा राजपूत समाज भी क्षत्रिय का एक भाग था ।
रावणा -राजपूत एक साहसी व कर्तव्य परायण समाज जिसे अपनो ने ही अपने स्वार्थनुसार इस्तेमाल किया ओर विभिन्न क्षैत्रों मे अलग अलग नाम दिये। परिस्थितियां कितनी भी विकट रही हो , लेकिन अपने बलबूते पर यही एक ऐसा समाज है जो शनेः शनेः प्रगति के पथ पर बिना किसी राजनीतिक, सामन्ती व सरकारी सहायता के अग्रसर होते हुए अपने मंजिल पर गौरान्वित महसुस कर विकास हेतु प्रयासरत है । हमे अब भी बहुत से क्षेत्रों मे प्रगति की आवश्यकता है । वह शिक्षा के माध्यम से ही संभव है ,समिति का छोटा सा यह प्रयास कहां तक समाज को आगे लाता है ,इसमे सब कुछ समाज के हर सदस्य की भागीदारी पर ही निर्भर है । हम संकल्प ले कि सततप्रयत्नशील रहते समाज हित हेतु कार्य करते हुए आने वाली पीढी को शिक्षित व आत्म निर्भर बनाकर सशक्त समाज का निर्माण करे ।